चिंता को अकारण ही चिता के समान नहीं कहा गया है । यदि एक बार चिंता मन में स्थायी रूप से घर बना ले तो यह स्वस्थ व्यक्ति को भी बीमार बना देती है । यह भी सही है कि किसी न किसी बात पर हम सभी चिंता करते हैं । इसलिए एक सीमा तक चिंता स्वाभाविक हैं, किन्तु निरंतर रूप से चिंता के आवरण में रहना घातक सिद्व होता है । दीर्घकालिक प्रभाव में यह किसी व्यक्ति को वैसे ही खोखला कर देती है, जैसे दीमक लकड़ी को । शास्त्र कहते हैं कि ‘‘मनुष्य रोते हुए पैदा होता है, शिकायत करते हुए जीता है और अंततः निराश होकर मर जाता है’’ वास्तव में जो लोग वर्तमान में जीते हैं, वही जीवन का सच्चा सुख भोगते हैं, क्योंकि जो बीत गया उसका अब स्मृतियों के अतिरिक्त विशेष महत्व नहीं रह जाता ।
इस समय समाज में व्यापक रूप से पसरे तनाव से उपजी चिंता के कारण नाना प्रकार की व्याधियां मनुष्य को अपनी चपेट में ले रही हैं । इसलिए आप चिंता से जितना अधिक दूर रहेंगे, उतने ही प्रसन्न और शांत रहेंगे । प्रायः जब हमारे मन में किसी कार्य को करने की इच्छा होती है तो उसे पूरा करने की चिंता भी घर बना लेती है, लेकिन हमें पता होना चाहिए कि केवल चिंता करने से ही कार्य संपादित नहीं होते, चिंता उल्टे कार्य की कठिनाई के स्तर को बढ़ा देती है ।
इसलिए सुखी जीवन जीने के लिए सबसे पहले हमें चिंता का परित्याग करना चाहिए, जिसके लिए हमें चिंता के कारण को चिह्नित करना चाहिए । चिंता की वजह कोई विशेष घटना या कोई व्यक्ति विशेष भी हो सकता है । अपने तनाव का समाधान ढूंढ़ने के लिए हमें नवाचार के तरीके अपनाने चाहिए, क्योंकि यदि हम यह पता लगाने में सफल हो जाएं कि हमारी चिंता का मूल कारण क्या है तो हम अपने अभिनव तरीकों से संबंधित समस्याओं का समाधान निकाल सकते हैं । फिर छोटे-छोटे कदम ही हमारी बड़ी से बड़ी चिंता से मुक्ति दिलाने में सहायक सिद्व होने लगते हैं ।
03
Jun
सत्य वचन। भय व लालच जैसे विकार भी चिंता को जन्म देते हैं।