मनुष्य सभी कार्य मन के बल पर ही करता है । मन की शक्ति बहुत प्रबल होती है । मन से शरीर का संचालन होता है । जब शरीर थक जाता है. तो मन शक्ति प्रदान कर उसे पुनः सक्रिय करता है । मनोविज्ञान के अनुसार चेतना पत्थर में सोती है, वनस्पति में जगती है, पशु में चलती है और मनुष्य में चिंतन करती है । अतः चिंतन मनुष्य की पहचान है । इस चिंतन का संबंध मनन से है जो मन की शक्ति के रूप में निहित होता है । मन ही हमारे उत्थान और पतन का कारण बनता है । अच्छे-बुरे विचार, आशा-निराशा का भाव, सात्विकता ओर तामसिकता के विचार सब मन से नियंत्रित होते हैं ।
मनुष्य का जीवन मूलतः मन का ही जीवन है । अगर मनुष्य का मन हार मान लेता है तो फिर जीत संभव नहीं हो सकती । जय और पराजय केवल मन के भाव हैं । जब हम किसी कार्य के आरंभ में ही हार मान लेते हैं तो जीतना मुश्किल हो जाता है । अपनी क्षमताओं में विश्वास का अभाव ही असफलता की ओर धकेलता है, इसलिए मन को सुदृढ़ बनाकर उसे सफलता प्राप्ति के प्रति आश्वस्त बनाकर अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए सदैव तत्पर रहें ।
मन की शक्ति को भूले बिना अपनी क्षमताओं में अथाह विश्वास ही सफलता की मूल पूंजी है । जो व्यक्ति मन से संकल्पित होकर अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सब कुछ लगा सकता है, उसके मार्ग में पर्वत भी बाधक नहीं बन सकते । वह रेगिस्तान में भी नदी बहा सकता है और ऊस भूमि में भी लहराते खेत तैयार कर सकता है । मनोबल वस्तुतः अपनी शक्तियों की सच्ची पहचान है । कड़ी से कड़ी परीक्षा की कसौटी पर और कितनी भी प्रतिकूल स्थितियों में जो व्यक्ति अपने मन को नियंत्राण में कर विचलित नहीं होता, वही सफल होकर इतिहास में अपना नाम दर्ज करा पाता है । इसलिए मन को कभी कमजोर नहीं होने देना चाहिए । मन अनंत अदम्य शक्ति का स्रोत है । मन की शक्ति अत्यंत व्यापक एवं अक्षय है । उस शक्ति की संभावना की अनुभूति हमेशा करनी चाहिए ।
27
May
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