मनुष्य की प्रकृति त्रिुणात्मक होती है । मनुष्य में सत्व, रजस, तमस तीनों गुण विद्यमान होते हैं, परंतु इन गुणों के स्तर में अंतर होने के कारण व्यक्ति का स्वभाव बदल जाता है । सतोगुणी की प्रकृति प्रकाशपूर्ण होती है । सात्विकता एवं पवित्राता इसके परम लक्षण होते हैं । श्रेष्ठ विचार, सहृदयता, शांति, स्थिरता तथा सौजन्यता आदि इसी प्रकृति की देन हैं । सतोगुणी व्यक्ति दुख, कष्ट, निंदा, अपमान, अभाव एवं दुख आदि में विचलित नहीं होता है । सदैव शांत रहता है । उसके विचार सदैव उत्कृष्ट एवं श्रेष्ठ होते हैं । उसके विचार, भाव, कर्म तीनों ही पवित्रा एवं पावन होते हैं । ऐसे व्यक्ति दूसरों को बहुत अधिक प्यार एवं अपनापन देते हैं । वे सदा ही निष्काम कर्म में नियोजित रहते हैं ।
रजोगुण वाला व्यक्ति चंचल, व्यग्र, तनाव, चिंता और अवसाद आदि से ग्रस्त रहता है । उसमें स्थिरता एवं एकाग्रता की भारी कमी होती है । उसके अंतस में वृत्तियों का अंधड़ सदा चलता रहता है । बात-बात में उग्र एवं उत्तेजित हो जाना उसका स्वभाव बन जाता है । वहीं तमोगुणी व्यक्ति में जड़ता इतनी अधिक होती है कि उसे न तो प्रेरित किया जा सकता है और न ही वह इच्छा ही करता है । चूंकि ऐसा व्यक्ति अंधकार को पसंद करता है । इसलिए अंधकार से संबंधित सभी दोषों जैसे भ्रम, भय, संदेह, शंका, संशय, ईर्ष्या और द्वेष आदि से उसे विशेष लगाव होता है । तमोगुणी व्यक्ति के अंदर सदैव भय भरा रहता है । वह जहां भी रहता है भय का संचार करता है ।
प्रत्येक मनुष्य का जीवन इन्हीं तीन गुणों के अधीन रहता है । अतः स्वभाव के अनुरूप तमोगुण वाले व्यक्ति को कर्मकांड से, रजोगुण को ज्ञान एवं सेवा से तथा सतोगुण को निष्काम कर्म करके अपना अभिवर्द्धन करना चाहिए । तभी व्यक्ति में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त करने की शक्ति आती है ।
26
May
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